एक पल में ख़त्म हो सकती है वुसअत दहर की चोटियों से चोटियों तक रास्ता आगे ख़ला और ख़ला की तीरगी में दूर से आई हुई किरनों के रंगों की नुमूद आसमाँ के पाँव पर महताब ओ अंजुम के सुजूद और ज़मीं की रौनक़ों का वहम फ़िक्र-ए-रफ़्त-ओ-बूद बुन दिए किस ने ये तार-ओ-पूद किस के हाथ में आया निज़ाम-ए-काएनात किस के ज़र्रे बन गए दुनिया सितारे आफ़्ताब किस ने आवारा-ख़याली को पिलाई फ़िक्र-ए-शीरीं की शराब किस ने ये सब कुछ बनाया और ख़ुद तारीक पर्दों में कहीं बैठा रहा क्या ये सब फैलाव मेरे वास्ते हैं या मैं ख़ुद उस की पुरानी रूह में बैठा हुआ गिन रहा हूँ उस के अश्कों की क़तार पोंछता हूँ उस के आँसू माँगता हूँ उस से भीक (चाहता हूँ रूह की ख़ातिर सुकूँ) वो तो ख़ुद इस ख़ैर-ओ-शर के जाल में उलझा हुआ दर्द से बेताब तख़्लीक़-ए-अज़िय्यत से निढाल चीख़ कर कहता है ''मुझ को मार डाल''