ये इक बच्चे का क़िस्सा है ये बच्चा था बड़ा ज़िद्दी नतीजा ये हुआ ज़िद का ये आदत पड़ गई उस की जो सीधी बात भी कहते समझता उस को वो उल्टी वो कहता गर्म को ठंडा वो कहता ठण्ड को गर्मी वो कहता फ़र्श को तकिया वो कहता मेज़ को कुर्सी वो कहता हैट को अचकन वो कहता कोट को सदरी वो कहता हौज़ को दरिया वो कहता झील को नद्दी वो कहता गोश्त को रोटी वो कहता दूध को पानी वो कहता मिर्च को शलग़म वो कहता प्याज़ को मूली वो कहता भेड़ को घोड़ा वो कहता बैल को बकरी खिलाते उस को गर लड्डू वो खाना चाहता बर्फ़ी मंगाते उस से गर आलू तो देता ला के वो गोभी ग़रज़ मैं क्या कहूँ 'नय्यर' थी बात उस की हर इक औंधी