ये इक दोहरी अज़िय्यत है अज़िय्यत बे-सबब हँसने की बे-आराम रातों की कहानी शब-ज़दों के सामने हँस हँस के कहने की ख़ुदावंद ख़ुदा की मेहरबानी है दुआएँ आप की हैं आप की सरकार में ज़िंदा हूँ ख़ुश हूँ बतौर नासेहाँ मिलता है कोई ब-रंग-ए-मेहरबाँ मिलता है कोई ब-सई-ए-रायगाँ मिलता है कोई वो कम-आगाह कम-एहसास कम-आवाज़ लड़की है वो लड़की मुझ से मिलती है मगर अंदर उतर जाए तो चुभती है वो अपनी कम-सवादी जानती है और सिसकती है अजब सूरत है वो जब भी कहीं जाए तो आ जाए कहीं रस्ता किनारे मुझ से टकराए तो आ जाए कभी भी अपनी कज-फ़हमी पे रो जाए तो आ जाए हवा-ए-शाम की आवाज़ सुन पाए तो आ जाए हवा-ए-शाम ये कैसी मोहब्बत है वो लड़की मुझ से मिलती है मगर अंदर उतर जाए तो चुभती है वो अपनी कम-सवादी जानती है और सिसकती है मैं अपनी कम-सवादी जानता हूँ और हँसता हूँ ये इक दोहरी अज़िय्यत है