ऐ ज़िंदगी तुझे यूँ गुज़रते देखा कभी गिरते तो कभी सँभलते देखा जब दिल चाहा तुझे भर लें इन बाँहों में हाथ से रेत सा फिसलते देखा रखा जो आइना तेरी निगाहों पर तुझ में ख़ुद को सँवरते देखा खुली जो आँख टूटा वो ख़्वाब ख़ुद में तुझ को बिखरते देखा कुछ जागी कुछ सोई यूँ ख़ुद में ही खोई कभी जली कभी बुझी सात रंगों से सजी वक़्त की पलकों पर यूँ निखरते देखा