मेरे पास कोई बाग़ नहीं है दोस्त कुछ अधूरे ख़्वाब एक बॉलकनी और दो तीन गमले हैं जो मुझे दुनिया में दरख़्तों के बाक़ी रहने की वजूहात बताते हैं और जंगलों को जला दिए जाने की ख़बरें पहुँचाते हैं मेरी बहन मेरे कमज़ोर पैरों में ज़ैतून के तेल से जान डालने की कोशिश करती है माँ होती तो वो भी यही करती काश सारी दुनिया में ज़ैतून के तेल के कुएँ हों और कमज़ोर पैरों में जान पड़ जाए और हम अपने प्यारों के साथ मोहब्बत के बाग़ में रोज़ चहल-क़दमी कर सकें एक दरख़्त तुम्हारे नाम का भी होगा मेरे दोस्त ताकि हम हमेशा मोहब्बत और शिफ़ा-याबी के मोजज़े में एक दूसरे के शरीक रहें