तेरी फ़ितरत में है 'गोबिंद' का आसार मगर 'इब्न-मरियम' का मुक़ल्लिद तिरा किरदार मगर राम और कृष्ण के जीवन से तुझे प्यार मगर बादा-ए-हुब्ब-ए-मोहम्मद से भी सरशार मगर सिख न ईसाई न हिन्दू न मुसलमान है तू तेरा ईमान ये कहता है कि इंसान है तू हिंदुओं से तुझे लेना है ज़ेहानत का कमाल और सिक्खों से शुजाअ'त कि न हो जिस की मिसाल अहल-ए-इस्लाम से लेना है इबादत का जलाल और ईसाईयों से सब्र लगन और इस्तिक़्लाल इन अनासिर को मोहब्बत से मिलाना होगा किश्वर-ए-हिन्द का इंसान बनाना होगा मन के मंदिर को मुनव्वर करे नूर-ए-इस्लाम का'बा-ए-दिल में रहे शाम-ओ-सहर राम का नाम कभी गंगा कभी कौसर से मिलें जाम पे जाम यूँ बनें शीर-ओ-शकर तेरी हुकूमत में अवाम राम हो और रहीम और न होने पाए अब कोई बच्चा यतीम और न होने पाए तुझ से उम्मीद ये है कि मुल्क में इफ़्लास न हो तंग-दस्ती न आए कहीं यास न हो अलम-ओ-रंज का दुख-दर्द का एहसास न हो और तअ'स्सुब की किसी क़ौम में बू-बास न हो उंसुर-ए-अम्न शिकन को तह-ओ-बाला कर दे तो जो आया है तो दुनिया में उजाला कर दे