तमाम औराक़ शबनमिस्तान-ए-सहर की किरनों से जगमगाए तुलूअ' होती है सुब्ह जैसे कली तमन्ना की मुस्कुराए कहीं दरख़्तों में ग़ोल चिड़िया का बैठ कर चहचहा रहा है कहीं से तोतों का झुण्ड उट्ठा फ़ज़ा-ए-गुलशन में ग़ुल मचाए सड़क जो आती है छावनी से चहल-पहल उस पे ख़ूब ही है निकल के गुंजान बस्तियों से बरा-ए-तफ़रीह सब हैं आए उसी पे आता है एक मोटर भी डाक-ख़ाने की डाक लेने उसी पे जाते हैं कुछ देहाती लदी हुई गाड़ियाँ हकाए टहलने जाती हैं लड़कियाँ कुछ हसीन फूलों की क्यारियों में निगाह-जादू शबाब-जादू जो आँख डाले वो लुट ही जाए इधर से गंगा को जा रहे हैं कुछ आदमी छागलें सँभाले उधर से गंगा से आ रही है कुछ औरतें नूर में नहाए उधर से कॉलेज की एक लड़की भी अपने कॉलेज को जा रही है किताब दाबे क़दम बढ़ाए शबाब थामे नज़र झुकाए उधर से एक नौजवान लेडी नए ख़यालों की आ रही है निगाह-ए-रक़्साँ शबाब उर्यां जो इस को देखे वो मुस्कुराए उधर से शाइ'र 'नुशूर'-ए-हैराँ भी अपनी सैरों में जा रहा है क़दम तख़य्युल में डगमगाए नए शबाबों से चोट खाए