शब-ए-एशिया के अँधेरे में सर-ए-राह जिस की थी रौशनी वो गौहर किसी ने छुपा लिया वो दिया किसी ने बुझा दिया जो शहीद-ए-ज़ौक़-ए-हयात हो उसे क्यूँ कहो कि वो मर गया उसे यूँ ही रहने दो हश्र तक ये जनाज़ा किस ने उठा दिया तिरी ज़िंदगी भी चराग़ थी तेरी गर्म-ए-ग़म भी चराग़ है कभी ये चराग़ जला दिया कभी वो चराग़ जला दिया जिसे ज़ीस्त से कोई प्यार था उसे ज़हर से सरोकार था वही ख़ाक-ओ-ख़ूँ में पड़ा मिला जिसे दर्द-ए-दिल ने मज़ा दिया जिसे दुश्मनी पे ग़ुरूर था उसे दोस्ती से शिकस्त दी जो धड़क रहे थे अलग अलग उन्हें दो दिलों को मिला दिया जो न दाग़ चेहरा मिटा सके उन्हें तोड़ना ही था आइना जो ख़ज़ाना लूट सके नहीं उसे रहज़नों ने लुटा दिया वो हमेशा के लिए चुप हुए मगर इक जहाँ को ज़बान दो वो हमेशा के लिए सो गए मगर इक जहाँ को जगा दिया