ज़मीं का क़र्ज़ है हम सब के दोश-ओ-गर्दन पर अजीब क़र्ज़ है ये क़र्ज़-बे-तलब की तरह हमीं हैं सब्ज़ा-ए-ख़ुद-रौ हमीं हैं नक़्श-ए-क़दम कि ज़िंदगी है यहाँ मौत के सबब की तरह हर एक चीज़ नुमायाँ हर एक शय पिन्हाँ कि नीम रोज़ का मंज़र है नीम शब की तरह तमाशा-गाह-ए-जहाँ इबरत-ए-नज़ारा है ज़ियाँ-ब-दस्त रिफ़ाक़त के कारोबार मिरे उतरती जाती है बाम-ओ-दर-ए-हयात से धूप बिछड़ते जाते हैं एक एक कर के यार मिरे मैं दफ़्न होता चला हूँ हर एक दोस्त के साथ कि शहर शहर हैं बिखरे हुए मज़ार मिरे