नाज़ क्यूँ हो न तुझे कृष्न दुलारी जमुना तू तो राधा की सहेली बनी प्यारी जमुना रुत्बा आली है तिरा मर्तबा भारी जमुना हर जगह फ़ैज़-ए-अतम रहता है जारी जमुना है यक़ीं गर्म किसी दिन भरी महफ़िल होगी रास-मंडल की वो लीला लब-ए-साहिल होगी मिट गया लुत्फ़ तिरा छिन गया गहना तेरा जब कन्हैया नहीं बे-लुत्फ़ है रहना तेरा ग़म उठाना सितम-ओ-जौर को सहना तेरा पानी हो हो के शब-ओ-रोज़ ये बहना तेरा आतिश-ए-हिज्र कुछ इस दर्जा लगी है तन में दिल न मथुरा में बहलता है न बिंदराबन में बात बिगड़ी नहीं अब भी है वही बात तिरी वही जाड़ा वही गर्मी वही बरसात तिरी दिन उसी ढंग उसी रंग की है रात तिरी कौन कह सकता है कुछ भी नहीं औक़ात तिरी कृष्न सदक़े हैं तो राधा हैं फ़िदाई जमुना हर तरफ़ ख़ल्क़ में है तेरी दहाई जमुना सादी सादी है रविश वज़्अ है भोली-भाली है रवानी भी ग़ज़ब चाल भी है मतवाली नीली मौजों से पशेमाँ हुईं ज़ुल्फ़ें काली हुस्न-ओ-आराइश-ओ-ज़ीनत से बढ़ी ख़ुश-हाली अल्लाह-अल्लाह रे इस नाज़-ओ-अदा की हस्ती तेरे आगे नहीं कुछ आब-ए-बक़ा की हस्ती पूछे राधा से कोई क़द्र-ए-हक़ीक़त तेरी कृष्न से जाँचे कोई ख़ूबी-ए-इज़्ज़त तेरी सारी दुनिया में है फैली हुई अज़्मत तेरी उस को जन्नत मिली की जिस ने भी ख़िदमत तेरी अपना हम-रुत्बा जो पाया तुझे गंगा-जी ने अपने पहलू में बिठाया तुझे गंगा-जी ने बाइ'स नाज़ है बे-शुबह हिमाला के लिए सबब-ए-फ़ख़्र-ओ-शरफ़ गोकुल-ओ-मथुरा के लिए ख़ास इक नेमत-ए-हक़ वादी-ओ-सहरा के लिए मुख़्तसर ये है बड़ी चीज़ है दुनिया के लिए दिल की सर-बस्ता कली फ़र्त-ए-ख़ुशी से खुल जाए उस को अमृत मिले जिस को तिरा पानी मिल जाए सच है असरार-ए-हक़ीक़त का ख़ज़ाना तू है हाल-ओ-मुस्तक़बिल-ओ-माज़ी का ज़माना तू है लुत्फ़-आगीं तरब-आमेज़ फ़साना तू है सब हैं बेगाने अगर है तो यगाना तू है साफ़ आईने की सूरत है सफ़ाई तेरी बंदगी क्यूँ न करे सारी ख़ुदाई तेरी निगह-ए-फ़ज़्ल-ओ-तरह्हुम से इशारा कर दे जो न हो काम किसी से वो ख़ुदारा कर दे रंज-ओ-ग़म दर्द-ओ-क़लक़ दूर हमारा कर दे प्यारी मख़्लूक़ में कुछ और भी प्यारा कर दे रहनुमाई तिरी 'बिस्मिल' के लिए सब कुछ है ना-ख़ुदाई तिरी 'बिस्मिल' के लिए सब कुछ है