झुग्गियों पर टाट के पर्दे पड़े थे फ़ुटपाथ पर क़तार पे क़तार ढाँचे पड़े थे काले पीले आसेब-ज़दा चेहरे खड़े थे फटे-पुराने जिस्म पर लत्ते पड़े थे धूल से उन के चेहरे अटे पड़े थे हाथ ख़ाली पेट ख़ाली रोटियों के लाले पड़े थे मेरे मुल्क के ये बच्चे मतवाले बड़े थे भारत-माँ की जय के नारे लगे थे कि ये बच्चे जश्न-ए-आज़ादी मना रहे थे