जश्न-ए-जम्हूरियत अब मनाएँ दीप यूँ हम ख़ुशी के जलाएँ आई छब्बीस फिर जनवरी हौसलों में हुई ताज़गी रफ़्ता रफ़्ता हम आगे बढ़ें फिर तरक़्क़ी का सामान करें कार-ख़ाने मशीन अस्लहा हर मशीन हम बनाएँ ज़रा काम से हम को रग़बत भी हो देश की यूँ हिफ़ाज़त भी हो सारे धर्मों का सम्मान हो भारती जो हो यक जान हो नग़्मे जम्हूर के गुनगुनाएँ हम सदा यूँ ही ख़ुशियाँ मनाएँ