जिस तरह किसी मुफ़लिस की तक़दीर का सितारा बहुत दूर कहीं तारीक राहों में भटक कर दम तोड़ रहा हो शाम होते ही इस दयार का चप्पा चप्पा घुप अंधेरों में डूब जाता है ऐसे में समाअ'त से सरगोशियाँ करते हुए सन्नाटे अंधेरों को कोसते हुए लम्हात दूर से आती हुई किसी बेबस की पुकार जब एहसास से टकराती है तो थरथराते हुए वजूद महव-ए-दुआ होते हैं ख़ालिक़ को सदा देते हैं