मैं उम्र की गिनती तो उल्टी नहीं कर सकता पर मैं बदलना चाहता हूँ तुम्हारी पारंपरिक सोच ताकि ख़ुद को महसूस कर सकूँ जवाँ और हौसला-मंद नक़ली दाँत लगा कर टूटे सपने नहीं देखूँगा उन्हीं हालात में ख़्वाबों की नई नीव रखूँगा बालों को रंगने की बजाए नए इन्द्र-धनुष रचूँगी चश्मे के बढ़ते नंबरों को भूल और नए अक्स तलाशूँगा क़दम लड़खड़ाने के पहले ही अपनी लाठी को मज़बूत करूँगा शोर पर ध्यान देने की जगह जो भी जीवन भर न सुन पाया वो गीत सुनूँगा मेरी झुकी कमर पर तरस खाए कोई उस से पहले किसी दोस्त का हाथ थाम लूँगा मेरे बुढ़ापे पर तरस मत खाओ जवानों मैं इस उम्र में भी तुम सा नौजवाँ लगूँगा हाँ मैं वो दिया का का नाटक दोहराऊँगा जो पहले कभी खेला गया था गर इस उमंगों ने साथ दिया तो बुढ़ापे में जवानी का एक नया इतिहास रचूँगा