बला से हम को लटकाए अगर सरकार फाँसी से लटकते आए अक्सर पैकर-ए-ईसार फाँसी से लब-ए-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी तमन्ना थी कि करता मैं लिपट कर प्यार फाँसी से खुली है मुझ को लेने के लिए आग़ोश-ए-आज़ादी ख़ुशा कि हो गया महबूब का दीदार फाँसी से कभी ओ बे-ख़बर तहरीक-ए-आज़ादी भी रुकती है बढ़ा करती है इस की तेज़ी-ए-रफ़्तार फाँसी से यहाँ तक सरफ़रोशान-ए-वतन बढ़ जाएँगे क़ातिल कि लटकाने पड़ेंगे नित तुझे दो-चार फाँसी से नज़र आएँगे हर सू शम-ए-आज़ादी के परवाने हज़ारों मुर्दा दिल हो जाएँगे बेदार फाँसी से फ़रिश्ते आसमाँ से बहर-ए-पा-बोसी उतरते हैं कि 'साबिर' झूलते हैं देश के सरदार फाँसी से