दिल है फ़ौलाद का पत्थर का जिगर रखते हैं जान जोखों में कफ़-ए-दस्त पे सर रखते हैं ख़ूँ रुलाएगा तुझे भी मेरा अफ़्साना-ए-ग़म हम-क़फ़स पूछ न क्यों दीदा-ए-तर रखते हैं क्यों न तड़पाए हमें अपने वतन की हालत सोज़-ए-दिल रखते हैं हम दर्द-ए-जिगर रखते हैं ऐ जफ़ा-कार तू मज़लूम की फ़रियाद से डर ये वो बंदे हैं कि आहों में शरर रखते हैं वो तही-दस्त हैं जो ज़ोर न ज़र रखते हैं जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में मगर रखते हैं किस को देते हैं भला दार-ओ-रसन की धमकी क्या डराते हो कि हम तीर-ओ-तबर रखते हैं हम को पिस्तौल का डर है न मशीनों का ख़तर मर्द-ए-मैदान हैं हम सीना-सिपर रखते हैं कोई भाला है न ख़ंजर है न बम हाथों में और न तलवार को हम ज़ेब-ए-कमर रखते हैं तुम को ताक़त का भरोसा है जो बेदाद-गरो हम को ये नाज़ कि नालों में असर रखते हैं रहनुमाओं की तमन्ना है न रहज़न का ख़तर हम वो रह-रौ हैं कि मंज़िल पे नज़र रखते हैं हम भी आज़ाद वतन को कभी देखें 'साबिर' ये दुआ विर्द-ए-ज़बाँ शाम-ओ-सहर रखते हैं