आओ अब ढूँडो मुझे फिसड्डी कह के मुझ को छेड़ने वालो हराओ अब मुझे हाँ मुझे भी खेल लगता था ये सब कुछ इब्तिदा में मगर ये भी तो सोचो मुसलसल हार कोई खेल है जो खेल इस को मान लेता मैं कहाँ तक हारता मैं? मिरे छुपने के सब कोने उजागर हो गए थे बहुत आसान होता जा रहा था ढूँडना मुझ को मुझे अब जीतना था किसी क़ीमत पे मुझ को जीतना था सो मैं ने ये किया वो आहट जो मिरी दुश्मन रही थी आज तक मैं ने उसी को मार डाला और जा कर छुप गया ख़ुद क़ब्र के तख़्तों के पीछे मनों मिट्टी के नीचे