बुलबुल के चहचहे में ग़ुंचों के क़हक़हे में रंग-ए-गुल-ए-चमन में ख़ुश्बू-ए-यासमन में बुस्तान-ए-पुर-फ़ज़ा में सरसर में और सबा में दरिया के पानियों में उस की रवानियों में सहराओं में भी हूँ मैं पर्बत की कुंदरों में सूरज में चन्द्रमा में अंजुम में कहकशाँ में मोती के झलकने में हीरे के दमकने में हर शम-ए-अंजुमन में परवाना की जलन में तबला की हर सदा में तम्बूर की नवा में आलम की सूरतों में मिट्टी की मूरतों में फिर क़ल्ब-ए-पारसा में और सीना-ए-सफ़ा में नाक़ूस में अज़ाँ में और वेद में क़ुराँ में काहिन की बंसुरी में और नग़्मा-ए-‘पुरी’ में