जिस्म शिकन-आलूद थकन की चादर ओढ़े रात को चुप की नर्म मसहरी पर सोया है गुम-सुम है खोया खोया है नींद के मलमल जैसे नीले हाले में तेरी यादें रक़्स की सूरत खोए हुए सुंदर देसों का क़र्या क़र्या घूम रही हैं जीवन के सत-रंग पहनते गीत की लय पर हौले हौले झूम रही हैं जीवन-रुत के ज़र्द सफ़र में आँखों के दरवाज़ों से दाख़िल होते दुल्हन जैसे कोरे ख़्वाब तेरे पैकर की ख़ुशबू से उजली उजली बातें करते रेशम हाथ मेरी अपनी गर्दन की रूयों से खेल रहे हैं तन्हाई के भोर समों में खुलने वाला हिज्र का मौसम झेल रहे हैं सुब्ह जब होगी टूटे बदन की ठीकरियों को कुन का मालिक जोड़ के फिर से सीधा कर देगा हड्डियों के गूदे में एक नए दिन के जीवन की सब्ज़ उम्मीदें भर भर देगा यूँ जीवन के गोदाम में जलती साँसों का एक और सुहाना दिन शाम की चक्की में दाना दाना हो कर पिस जाएगा और जिस्म यूँही धीरे धीरे इक रोज़ शिकन-आलूद थकन की चादर ओढ़े मरन बरत की नर्म मसहरी पर सो जाएगा