जल चुकी शाख़-ए-नशेमन थम चुकी बाद-ए-सुमूम अब हवा-ए-नौ-बहाराँ कौसर-अफ़्शाँ है तो क्या कर चुकी ख़ून-ए-तमन्ना तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म आसमाँ पर अब नया सूरज दरख़्शाँ है तो क्या जाम अफ़्सुर्दा सुराही सर-निगूँ मीना ख़मोश मय-कदे में अब हुजूम-ए-मय-गुसाराँ है तो क्या दूर हो सकता नहीं ऐ दोस्त क़रनों का सुकूत ज़िंदगी अब अपने बरबत पर ग़ज़ल-ख़्वाँ है तो क्या गर्दिश-ए-दौराँ पे कोई फ़त्ह पा सकता नहीं तेरे लब पर शिकवा-ए-आलाम-ए-दौराँ है तो क्या मुन्कशिफ़ होने को है राज़-ए-सबात-ए-जावेदाँ आज अगर शीराज़ा-ए-हस्ती परेशाँ है तो क्या कल ये दुनिया वादी-ए-रक़्स-ओ-नवा कहलाएगी आज अगर जौलाँ-गह-ए-सैलाब-ओ-तूफ़ाँ है तो क्या सड़ चुके इस के अनासिर हट चुका सोज़-ए-हयात अब तुझे फ़िक्र-ए-इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ है तो क्या ज़िंदगी की तल्ख़ियों ने छीन ली ताब-ए-नज़र तूर की चोटी पर 'अफ़सर' अब चराग़ाँ है तो क्या