प्यारी जो है तुझे ख़ुदा की क़सम तुझ में है किस के हुस्न का आलम तुझ में किस शोख़ की सबाहत है किस की ज़ुल्फ़ों की तुझ में निगहत है ताज़गी तू ने किस की पाई है तू ये सूरत कहाँ से लाई है बाग़ आबाद है तिरे दम से तेरी ख़ूबी जुदा है आलम से बाग़ से तुझ को तोड़ लाते हैं लोग सर पर तुझे बिठाते हैं नाज़-बरदार हैं हसीन तिरे ख़ुद तलबगार हैं हसीन तिरे जब तुझे आँखों से लगाते हैं तमकनत सारी भूल जाते हैं गो समझते हैं हम रक़ीब है तू फिर भी दिलकश है ख़ुश-नसीब है तू