किस क़दर दिल-फ़रेब है बेला ख़ुशनुमा दिल-पज़ीर अलबेला है भरा इस की ज़ात से गुलज़ार दीदनी शाम को है इस की बहार इस का पौदा फ़लक से बरतर है इस का हर फूल रश्क-ए-अख़्तर है शौक़ से इस को तोड़ लाते हैं लोग हमदम इसे बनाते हैं हुस्न-अफ़ज़ा-ए-मह-जबीनाँ है रौनक़-ए-महफ़िल-ए-हसीनाँ है इस से पाते हैं तक़्वियत अरमाँ बज़्म-ए-इशरत की है ये रूह-ए-रवाँ बू-ए-ख़ुश इस की दिल को भाती है ताज़गी इस से रूह पाती है इस का रंग-ए-सबीह आफ़त है इस की सूरत ख़ुदा की क़ुदरत है