तुम से बे-रंगी-ए-हस्ती का गिला करना था दिल पे अम्बार है ख़ूँ-गश्ता तमन्नाओं का आज टूटे हुए तारों का ख़याल आया है एक मेला है परेशान सी उम्मीदों का चंद पज़मुर्दा बहारों का ख़याल आया है पाँव थक थक के रहे जाते हैं मायूसी में पर मोहसिन राह-गुज़ारों का ख़याल आया है साक़ी-ओ-बादा नहीं जाम-ओ-लब-ए-जू भी नहीं तुम से कहना था कि अब आँख में आँसू भी नहीं