सुनहरी सूरज ने आसमाँ पर कहा कि क्या भेजूँ मैं ज़मीं को ये राग था किरनों की ज़बाँ पर ज़मीं पे जाने दो तुम हमीं को तरस गया धूप को ज़माना हैं कब से छाई हुई घटाएँ जो आज कर दो हमें रवाना ज़मीन पर नूर जा बिछाएँ घटा के पर्दों को चाक कर दें ज़मीन पर रौशनी लुटाएँ चमन को कीचड़ से पाक कर दें दरख़्तों से खेलें और खिलाएँ ये गीत गाती हुई जहाँ में छमा-छम आएँ सुनहरी किरनें हर एक घर में हर इक मकाँ में मचल के छाएँ सुनहरी किरनें जो बच्चे इस वक़्त सो रहे हैं ये उन के बिस्तर पे झूमती हैं वो चुप हैं बेहोश हो रहे हैं ये उन की आँखों को चूमती हैं ये उन के गालों पे गिरती हैं तो गाल हो जाते हैं सुनहरी ये उन के बालों पे गिरती हैं जब तो बाल हो जाते हैं सुनहरी रसीली लय में सुना रही हैं कि उठो जाग उठो प्यारे बच्चो हवाएँ भी गीत गा रही हैं कि आओ अब खेलो प्यारे बच्चो बस उठ खड़े हो हमारी ख़ातिर ये सोचो आए हैं हम कहाँ से और इस पे देखो तुम्हारी ख़ातिर ये तोहफ़ा लाए हैं आसमाँ से ये तोहफ़ा तुम जानते हो क्या है सुनहरी सूरज की रौशनी है वो देखो सूरज चमक रहा है शफ़क़ की वादी लहक रही है