हक़ीक़त का तक़ाज़ा है हो दिल को जुस्तुजू पहले हुसूल-ए-मुद्दआ को चाहिए कुछ आरज़ू पहले निगाहें ख़ुद ही आएँगी चमन में बहर-ए-नज़्ज़ारा तिरे गुलशन के फूलों में मगर हो रंग-ओ-बू पहले अगर शीशे में सहबा है तो मय-कश मिल ही जाएँगे मुहय्या मय-कदे में चाहिए जाम-ओ-सुबू पहले समा जाएगा सुर्मा बन के ख़िल्क़त की निगाहों में तू अपनी ज़ात में पैदा करे गर आबरू पहले हरे हो जाएँगे इक दिन तिरी उम्मीद के बूटे चमन में आँसूओं की तू बहा दे आबजू पहले गरेबाँ चाक हो मजनूँ-सिफ़त गर शौक़-ए-लैला है फिरा कर दश्त-ए-वहशत में मिसाल-ए-क़ैस तू पहले ख़ुदी को गर मिटाएगा ख़ुदा भी मिल ही जाएगा उठाया चाहिए दिल से हिजाब-ए-मा-ओ-तू पहले ज़रूरी है कि खुल जाएँ क़ुबूलिय्यत के दरवाज़े दुआओं को 'पुरी' दिल से निकलने की हो ख़ू पहले