सहर-ओ-शाम तुझे याद किया करते हैं तेरी ही याद से दिल शाद किया करते हैं हक़ तो ये है कि शब-ओ-रोज़ तेरी रहमत से दिल-ए-बर्बाद को आबाद किया करते हैं तुझ को मंज़ूर है आसाइश-ए-ख़िल्क़त या-रब तेरे बंदे सितम ईजाद किया करते हैं बन के पंछी जो गिरफ़्तार-ए-बला होते हैं वो फ़क़त शिकवा-ए-बेदाद किया करते हैं आग लग जाए मबादा कहीं सय्याद के घर डर के आह-ए-दिल-ए-नाशाद किया करते हैं जो गला फाड़ के मुर्ग़ान-ए-सहर बोलते हैं अपने नालों को वो बर्बाद किया करते हैं इश्क़ वाले ‘पुरी’ परवाना-सिफ़त जलते हैं वो तड़पते हैं न फ़रियाद किया करते हैं