कभी कभी By Nazm << ख़ुद-फ़रेबी इल्तिजा >> कभी कभी ऐसा लगता है चारों जानिब अंगारे हैं और मुझे इन अंगारों पर नंगे पाँव ही चलना है कभी कभी ऐसा लगता है छोड़ गए हैं मेरे अपने और मैं तन्हा बीच सड़क पर सर पे धूप की चादर ओढ़े परछाईं को ढूँड रहा हूँ Share on: