कभी कभी जी करता है दूर फ़लक तक उड़ता जाऊँ चाँद की दूधिया भेड़ को ज़ब्ह कर आऊँ अपने नाख़ुन की धार से घने पहाड़ों को चीर आऊँ इतनी ज़ोर से चीख़ूँ सारी खुशबू-दार हवाएँ दूर तलक लुढ़कें और मर जाएँ कभी कभी जी करता है ख़ामोश रहूँ अपने बातिन की तन्हाई में आ कर चुप के दो आँसू रो लूँ