कभी कभी ऐसा होता है अपने ही घर में भीड़ में लोगों की रह कर भी दिल अन-जानी दहशत से धक धक करता है नींद आँखों से उड़ जाती है कभी कभी ऐसा होता है घने अंधेरे जंगल में दिल कोई ख़ौफ़ नहीं खाता है रात बसर हो जाती है बड़े सुकूँ से कभी कभी ऐसा होता है सारे मंज़र आँखों में रौशन रहते हैं दिल में लेकिन कोई मंज़र जज़्ब नहीं होता कभी कभी ऐसा होता है सहरा में कुछ भी नहीं होता लेकिन आँखों के आगे सब कुछ रौशन रहता है कभी कभी ऐसा होता है कभी कभी ऐसा