इक नए शहर में आ गया हूँ यहाँ मेरे अल्फ़ाज़ से मेरे लहजे से कोई भी वाक़िफ़ नहीं है मिरे गीत ख़ुशियों के या ग़म के इज़हार हैं ये कोई भी समझता नहीं है मगर सेहर में फिर भी हर शख़्स डूबा हुआ है मुझे लग रहा है कि मेरी सदा एक चिड़िया की आवाज़ में ढल गई है हुस्न-ए-फ़ितरत का इक राज़ मैं हो गया हूँ