और कुछ देर में लुट जाएगा हर बाम पे चाँद अक्स खो जाएँगे आईने तरस जाएँगे अर्श के दीदा-ए-नमनाक से बारी-बारी सब सितारे सर-ए-ख़ाशाक बरस जाएँगे आस के मारे थके हारे शबिस्तानों में अपनी तन्हाई समेटेगा, बिछाएगा कोई बेवफ़ाई की घड़ी, तर्क-ए-मदारात का वक़्त इस घड़ी अपने सिवा याद न आएगा कोई तर्क-ए-दुनिया का समाँ ख़त्म-ए-मुलाक़ात का वक़्त इस घड़ी ऐ दिल-ए-आवारा कहाँ जाओगे इस घड़ी कोई कसी का भी नहीं रहने दो कोई इस वक़्त मिले गा ही नहीं रहने दो और मिले गा भी इस तौर कि पछताओगे इस घड़ी ऐ दिल-ए-आवारा कहाँ जाओगे और कुछ देर ठहर जाओ कि फिर नश्तर-ए-सुब्ह ज़ख़्म की तरह हर इक आँख को बेदार करे और हर कुश्ता-ए-वामाँदगी-ए-आख़िर-ए-शब भूल कर साअत-ए-दरमांदगी-ए-आख़िर-ए-शब जान पहचान मुलाक़ात पे इसरार करे