मैं क्या लिखूँ कि जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है वो आशिक़ी की ज़बाँ में कहीं भी दर्ज नहीं लिखा गया है बहुत लुतफ़-ए-वस्ल ओ दर्द-ए-फ़िराक़ मगर ये कैफ़ियत अपनी रक़म नहीं है कहीं ये अपना इशक़-ए-हम-आग़ोश जिस में हिज्र ओ विसाल ये अपना दर्द कि है कब से हमदम-ए-मह-ओ-साल इस इश्क़-ए-ख़ास को हर एक से छुपाए हुए ''गुज़र गया है ज़माना गले लगाए हुए''