ज़मीं से तो ये बात है दूर की मगर कहकशाँ है सड़क नूर की कहीं सफ़-ब-सफ़ रंग की बोतलें जलाई हैं या चर्ख़ ये मशअलें करें ग़ौर तो अक़्ल सो जाएगी नज़र इतने तारों में खो जाएगी ये रस्ते में शो'ले बिछाए गए कि बिजली के टुकड़े उड़ाए गए इधर से उधर तक है दरिया-ए-नूर कि आईना हो गया चूर चूर ज़मीं पर कहाँ इस क़दर रंग-ओ-रूप ये शायद फ़रिश्तों की है दौड़ धूप नज़र आ रहा है ये तारों का बाग़ फ़रिश्तों ने रौशन किए हैं चराग़ वो भरपूर है रौशनी का समाँ कि जैसे पिसे चाँद सूरज यहाँ समाँ देख कर तुम कहाँ खो गए 'चमन' जी तुम आ कर यहाँ सो गए