दुनिया से कर के प्यार लगाएँगे क़हक़हे ग़म पर हज़ार बार लगाएँगे क़हक़हे दुनिया हँसेंगी अपनी हिमाक़त पे जब कभी हम और बे-शुमार लगाएँगे क़हक़हे कुछ ग़म नहीं है हम को ज़माने का दोस्तो पतझड़ हो या बहार लगाएँगे क़हक़हे घर वाले इस मरज़ से परेशान हूँ तो क्या बे-वज्ह बार बार लगाएँगे क़हक़हे देखेंगे हम लतीफ़ों भरे ख़्वाब रात भर फिर सुब्ह मिल के यार लगाएँगे क़हक़हे कुछ फ़िक्र पास फ़ेल की हम को नहीं हुज़ूर हूँ इम्तिहाँ हज़ार लगाएँगे क़हक़हे दो दिन की ज़िंदगी में रहे क्यों उदास दिल जब होंगे बे-क़रार लगाएँगे क़हक़हे डैडी लगेंगे रेल का इंजन हमें 'नियाज़' सुलगेगा जब सिगार लगाएँगे क़हक़हे