मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' अपने फ़न में बड़े हुश्यार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' आप का नाम असदुल्लाह था नौ-शाह लक़ब मिर्ज़ा ग़ालिब से हुए बाद में मारूफ़-ए-अदब आज भी पढ़ के कलाम आप का हैरत में हैं सब ज़ुल्फ़-ए-उर्दू में गिरफ़्तार थे मिर्ज़ा ग़ालिब मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा ग़ालिब अकबराबाद में पैदा हुए देहली में रहे अहद-ए-तिफ़्ली ही से दुनिया के बड़े ज़ुल्म सहे अब भी हर अहल-ए-सुख़न आप को उस्ताद कहे सारे शोअ'रा के अलम-दार थे मिर्ज़ा ग़ालिब मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' तंग-दस्ती में भी छोड़ा न वफ़ा का दामन मुफ़्लिसी में भी न अपनाए ख़ुशामद के चलन ख़ून-ए-जज़बात से शादाब किया बाग़-ए-सुख़न फ़ितरतन शायर-ए-ख़ुद्दार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा ग़ालिब आप पर फ़ारसी शोअ'रा का भी था ख़ूब असर मसअला ख़िदमत-ए-उर्दू का भी था पेश-ए-नज़र अपने अशआ'र की अज़्मत से भी वाक़िफ़ थे मगर 'मीर' जी के भी तरफ़-दार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' ख़त-नवीसी का दिया एक अनोखा अंदाज़ गूँज उठी बज़्म-ए-अदब में ये निराली आवाज़ आप मैदान-ए-सुख़न में भी थे सब से मुम्ताज़ साथ ही इक बड़े नस्सार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' बे-नियाज़-ए-ग़म-ओ-आलाम हर इक फ़िक्र से दूर हो मुसीबत में भी रहते थे हमेशा मसरूर आज भी जिन के लतीफ़े हैं जहाँ में मशहूर मुस्कुराते हुए किरदार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब' मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'