दहलीज़ पर जो ख़्वाब टूटा है वो कल का तो नहीं था वो तो न-जाने कितने सालों से नानियों दादियों ने अल्हड़ आँखों में जगा रक्खा था ये जो दीवार पर लगी तस्वीर अचानक धड़ाम से नीचे गिर गई है ये कल ही तो नहीं टांगी गई थी ये तो उस आईने में सालों से नज़र आ रही थी जो लड़कियाँ तकिए के नीचे इस उम्मीद पर रख कर सोती थीं कि इस रात के ख़्वाब में उन के दूल्हा की शबीह उभरेगी ये जो तस्वीर गिर कर टूट गई है ये सदियों की शबीह को भी तोड़ गई है ये जो कल देखते ही देखते आसमान पर एक बादल का रंग काला सियाह पड़ गया था ये बादल सिर्फ़ कल ही तो नहीं आसमान पर आया था ये कॉलेज के आसमान पर नीले रंग में न-जाने कितने सालों से रुका हुआ था ये जो कल मोहब्बत और ए'तिमाद की तहरीर देखते ही देखते काग़ज़ से ग़ाएब हो गई वो सिर्फ़ कल ही तो नहीं लिखी गई थी न-जाने कब से मोहब्बत की कहानियाँ लिखने वाले उसे सफ़्हात पर उतार रहे थे कल जो मेरे दरवाज़े के सामने खड़ी सड़क यकायक कहीं और मुड़ गई और फिर नज़रों से ओझल हो गई ये सानेहा सिर्फ़ कल का तो नहीं उस सड़क ने तो सालों से रास्ता बदलने और ग़ाएब होने की ठान रखी थी ख़्वाब तस्वीर तहरीर बादल और सड़क उन के टूटने और बदलने की बात कल ही की बात नहीं होती