हर रात जा कर छत पे इक ऐसा सितारा ढूँढना मुमकिन हो जस का टूटना अपनी नज़र के सामने कुछ देर तक कर आसमाँ को थक चुकीं पलकें गिरी जब खुली पलकें तो देखा आसमाँ क़दमों पे था वो खड़े थे सामने जिन की थी दिल को आरज़ू देखा उसी पल गिर रहा है एक सितारा टूट कर'' अब ये थी उलझन कि हम देखें उन्हें या माँग लें थे इसी उलझन में हम और सुनी आहट तभी चौंक कर'' पलकें खुलीं तो देख कर'' हैरान थे रात ख़्वाबों में गुज़ारी कश्मकश भी फ़ुज़ूल थी हर रात का है सिलसिला ये और नई उमीद है मिल जाएँगे हम तुम कहीं और टूटेगा तब एक सितारा उस हसीं पल का रहे गा ता-उम्र हम को इंतिज़ार