अस्र-ए-हाज़िर में है ऐसा साहिब-ए-तदबीर कौन बज़्म-ए-गीती की बदल सकता है अब तक़दीर कौन दास्तान-ए-शौक़-ओ-मस्ती इक मुअ'म्मा बन गई सूरत-ए-मंसूर सर दे कर लिखे तफ़्सीर कौन मर-मिटा दीवाना क़ैस अब नाज़-ए-लैला कौन उठाए कोहकन भी चल बसा लाता है जू-ए-शीर कौन काँपते हैं बाग़बाँ की सब निगाह-ए-गर्म से बर्क़ की ज़द पर करेगा आशियाँ ता'मीर कौन ग़ालिब-ए-आतिश-नवा कुंज-ए-लहद में है ख़मोश सोज़ से दिल के भरे नग़्मात में तासीर कौन है बहुत मुश्किल बदलना महफ़िल-ए-हस्ती का रंग साज़ को रख कर उठाए हाथ में शमशीर कौन अक़्ल-ओ-दिल की कश्मकश मुझ को तो ले डूबी 'मुनीर' कहिए दोनों में है आख़िर लाएक़-ए-ताज़ीर कौन