पानी में अक्स देखा जंगल में रक़्स देखा सूरज लिबास पहने चंदा से ज़ियादा ठंडा उस रात आईने में इक ऐसा शख़्स देखा चाँदनी के रथ पर सज के उस शख़्स की सवारी अब हो रही है देखो सू-ए-उफ़ुक़ रवाना अब लाएगी वहाँ से कुछ दर्द का ख़ज़ाना उन मंज़रों से हट के झरने के शोर-ओ-शर में हम ने नहाते देखी इक हूर बे-हिजाबी चाँदनी के बहर ओ बर में कार्तिक की ख़्वाब-नाकी आँखों के दो-जहाँ तक कातिक की चंद्रमाई सपनों के ला-मकाँ तक ऐ ला-मकाँ मकानी सुन के सदा किसी की जूँ पीछे मुड़ के देखा वाँ दूर कोह-ए-दिल की नम नम सी लकड़ियों का ब्रिहन सा ख़ूब-सूरत चोटी पे इक मकाँ था लेकिन वो जल रहा था कातिक की चाँदनी में!