मैं तितली के परों का खोया हुआ रंग थी अपने मौसम को ढूँढती सब्ज़ हवा थी पूरे चाँद की रातों में भीगे हुए साहिलों पर समुंदर के गुनगुनाने की आवाज़ थी जंगलों के सियह-आँचल पर सितारे टाँकती चाँदनी थी बारिश की हँसी थी या हवा की छुवन थी तुम ने मुझे महज़ एक औरत समझा क्या तुम्हें अपनी आस्तीन पर ख़ून के धब्बे दिखाई नहीं देते