तुम्हारी मा'ज़रत का कोई भी अंदाज़ मेरी बे-सदा होती हुई धड़कन को अब ठहरा नहीं सकता मिरे कुछ बेश-क़ीमत ख़ूबसूरत मौसमों को और ख़्वाबों को कभी लौटा नहीं सकता तुम्हें शायद कभी इस की ख़बर भी हो बसा-औक़ात दिल इस ज़ाविए से टूट जाते हैं ख़सारे यूँ भी होते हैं कि जिन की ज़िंदगी भर कुछ तलाफ़ी हो नहीं सकती कोई क़ीमत एवज़ ख़्वाबों के काफ़ी हो नहीं सकती