आज के दिन जो अपने डर का इज़हार किया तो कि मैं तो अपना लूँ उसे मौत ने इंकार किया तो वो कच्ची सी उम्र वो पक्का सा हादिसा इक काँच का महल आज संगसार किया तो इक रूप बाहर इक है पीछे और इक उन के बीच मैं ने ग़लत से प्यार किया तो दिल पर रख पत्थर या हो पत्थर दिल हू-ब-हू उन की तरह उन पय वार किया तो कि रुकती हैं साँसें लो रोक दी गईं फिर भी सोचा जाए तेरा इंतिज़ार किया तो