दिल ये बोले कि बाँध रख़्त-ए-सफ़र और ज़ेहन आए बेड़ियाँ बन कर अब अज़िय्यत तिरा मुक़द्दर है तू निकल जा या देख ले रुक कर हाँ मगर एक एक लम्हा वो जो तू इस कश्मकश से गुज़रेगा इक हसीं बाब बन के यादों का उम्र भर तेरे साथ ठहरेगा वो सफ़र जो न तय किया तू ने प्यार से बार बार छेड़ेगा