क़दम रखने से पहले जान लो कि बे-आबाद जगह आसेब-ज़दा भी हो सकती है बस्ती बसाने से पहले जिन की ख़ुश-नूदी लाज़िम आती है बसे रहने का मुआवज़ा कलाबत्तूनी पहना दे ज़र्क़ चढ़ावे मुरस्सा कुंदनी पर्नियाँ हैं अशरफ़ी बोटी वाले कम-ख़्वाब का सरबार भी अदा करना होता है वर्ना उन के उस्लू-ए-बहयात से इंहिराफ़ अल-अक़ारिब अल-अक़रब हासिल-ए-हयात रहेगा आफ़ियत महाजनी मिज़ाज का तक़ाज़ा पूरा करने में है वर्ना जान रखो हवस का आसेब इकाती उखेड़ फेंकने में तअम्मुल न करेगा