फूल खिले हैं रंग-बिरंगे गमलों में जो बीज थे बोए उन में से कुछ पौदे फूटे कुछ को गमलों ही में छोड़ा कुछ को क्यारी में जा बोया उन पे पड़ीं पानी की फुवारें झूम उठी पौदों की क़तारें रोज़ बढ़ीं वो अंगुल अंगुल फैलीं पतियाँ उभरे डंठल उन में से फिर कलियाँ फूटीं रंगों की पिचकारियाँ छूटीं वो जो शाम को इक कली थी सुब्ह हुई तो फूल बनी थी मिट्टी में तो कुछ भी नहीं था दाना ही बस इक बोया था आए कहाँ से फूल ये प्यारे इतने अच्छे इतने प्यारे मिट्टी में से पेड़ उभरे हैं शाख़ों में से फूल खिले हैं फूल खिले हैं रंग-बिरंगे हैं ये सब क़ुदरत के तमाशे