कौन ज़ंजीर तोड़ सकता है किस में हिम्मत है तुम से लड़ने की किस में जुरअत है सर उठाने की कौन बाग़ी तुम्हारी ज़ात से हो किस सितमगर को जान प्यारी नहीं जान है तो जहान है प्यारे लोग ज़िंदा रहेंगे लालच में कि किसी रोज़ वक़्त आएगा एक लश्कर मसर्रतों का लिए और तह-ए-तेग़ कर के रख देगा ग़म की फ़ौजों को क़हर के दिल को और ये बे-निशान क़ैदी भी इसी झूले में छूट जाएँगे सिलसिले दुख के टूट जाएँगे तुम मगर फ़िक्र मत करो जानाँ ये तो लालच है ज़िंदा रहने का ख़्वाब है मुर्दा ज़र्फ़ लोगों का वक़्त मज़लूम का नहीं होता तुम परेशान मत हो जान-ए-जाँ तुम से मुँह कौन मोड़ सकता है कौन ज़ंजीर तोड़ सकता है