ऐ यार-ए-दिल-नशीं वो अदा कौन ले गया तेरे नगीं से नक़्श-ए-वफ़ा कौन ले गया हल कर दिया था जिस ने मुअ'म्मा शबाब का तुझ से वो फ़िक्र-ए-उक़्दा-कुशा कौन ले गया था लुत्फ़ पहले क़हर में अब सिर्फ़ क़हर है ज़ुल्मत से मौज-ए-आब-ए-बक़ा कौन ले गया क्यूँ दफ़अ'तन लबों पे ख़मोशी सी छा गई इस साज़-ए-दिल-नशीं की सदा कौन ले गया आँखों से शान-ए-बज़्ल-ओ-सख़ा किस ने छीन ली सीने से ज़ौक़-ए-लुत्फ़-ओ-अता कौन ले गया थीं जिस की रौ से ख़ून-ए-तमन्ना में सुर्ख़ियाँ रुख़्सार से वो रंग-ए-वफ़ा कौन ले गया रातों को माँगना था दुआ मेरी दीद की वो मिन्नतें वो ज़ौक़-ए-दुआ कौन ले गया ऐ शाह बंदा-पर्वर-ए-सुल्तान-ए-नर्म-दिल दिल से तिरे ख़याल-ए-गदा कौन ले गया पहली सी वो कलाम में नर्मी नहीं रही गुफ़्तार से मिज़ाज-ए-सबा कौन ले गया अब 'जोश' के लिए हैं न आँसू न आह-ए-सर्द इस गुल्सिताँ की आब-ओ-हवा कौन ले गया