ख़ाक-ए-जामिआ By Nazm << हम पत्थर नहीं हैं जलती रात सुलगते साए >> ख़ाक-ए-पाक-ए-जामिआ आसमाँ से बढ़ गया है आज तेरा मर्तबा है तिरी आग़ोश में अब महव-ए-ख़्वाब इल्म-ओ-तहज़ीब-ओ-ख़िरद का आफ़्ताब आज है मदफ़ून तेरे सीना-ए-बे-नूर में मादर-ए-हिन्दोस्ताँ का नूर-ए-ऐन सद्र-ए-बज़्म-ए-अहल-ए-दिल ज़ाकिर-हुसैन Share on: