ज़मीं बाँझ चेहरों के हम-राह चलती चली जा रही है ख़ला अपनी बर्फ़ाब सी वुसअतों में ज़माने उगलता हुआ चल रहा है सफ़र ज़ावियों की पनाहों में बैठा हुआ ख़्वाब में ढल रहा है ज़मीं बाँझ चेहरों के हम-राह चलती चली जा रही है हवा अपनी साँसों के बारूद में ख़्वाहिशों को उलटती हुई बह रही है ज़मीं बाँझ चेहरों के हम-राह चलती चली जा रही है समुंदर की ख़ूँ-ख़्वार लहरें सफ़र दर सफ़र ख़ौफ़ पहने हुए भागती जा रही हैं कभी चाँद के और कभी जलते सूरज के जिस्मों को पी के कई रंग फैला रही हैं ज़मीं बाँझ चेहरों के हम-राह चलती चली जा रही है