ख़ामोशी का शोर By Nazm << ख़्वाब के आख़िरी हिस्से म... कैसी उफ़्ताद पड़ी >> बादलों के ख़ून से चिपकी हुई इस शाम में उड़ रहे थे कुछ परिंदे लड़खड़ाती आहटों के कारवाँ के साथ में शहर गर्दी में रहा घर का रस्ता याद आता ही न था किस क़दर मैं डर गया था नींद की ख़ामोशियों के शोर से Share on: